नए समय की कोयल

फैल रही है चारों जानिब

नए समय की सुंदर ख़ुशबू

आने वाले कल की क़िस्मत

न मैं जानूँ न जाने तू

सब्ज़ा रंगत तितली जुगनू

जाने कब से चमक रहे हैं

पेड़ की हर इक शाख़ पे आँसू

और इस पेड़ की इक डाली पर

कोयल करती जाए कू कू

कोयल करती जाए कू कू

देखती जाए यूँही हर सू

वक़्त को जाते देख रही है

और ये बैठी सोच रही है

गुज़रे साल ने क्या बख़्शा है

अगले समय में क्या लिक्खा है

पिछले साल के बाशिंदे तो

अब भी सज़ाएँ काट रहे हैं

इक दूजे के सोग में बैठे

अपने लहू को चाट रहे हैं

देखें अगले साल में क्या हो

पेड़ की शाख़ों पर क्या होगा

शबनम तारे जुगनू आँसू

कोयल बैठी सोच रही है

वक़्त को जाते देख रही है

कोयल करती जाए कू कू

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