उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
हम कि मजबूर-ए-वफ़ा थे आहटें सुनते रहे
जब तख़य्युल इस्तिआरों में ढला तो शहर में
देर तक हुस्न-ए-बयाँ के तज़्किरे होते रहे
दीप यादों के जले तो एक बेचैनी रही
इतनी बेचैनी कि शब भर करवटें लेते रहे
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
किस नगर की ख़ाक थे किस दश्त में ठहरे रहे
हम 'बक़ा' इक रेत की चादर को ओढ़े देर तक
दश्त-ए-माज़ी के सुनहरे ख़्वाब में खोए रहे
(1068) Peoples Rate This