बक़ा बलूच कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बक़ा बलूच
नाम | बक़ा बलूच |
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अंग्रेज़ी नाम | Baqa Baluch |
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
लोग चले हैं सहराओं को
कैसा लम्हा आन पड़ा है
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
हम ने जिन को सच्चा जाना
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
गर्मी-ए-शिद्दत-ए-जज़्बात बता देता है
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
संदेसा
नए समय की कोयल
मुझे इक शेर कहना है
माँ
वा'दे झूटे क़स्में झूटी
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
कैसा लम्हा आन पड़ा है
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में