मार देती है ज़िंदगी ठोकर
ज़ेहन जब उल्टे पाँव चलता है
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लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
कोई मंज़िल कभी नहीं आई
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
पावँ से काँटा निकल जाए अगर
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता