साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है

साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है

सच्चे रिंदों पर मय-ख़ाना खुलता है

उन गलियों में लोग भटकते देखे हैं

जिन गलियों में दानिश-ख़ाना खुलता है

मुझ को पढ़ने आ जाते हैं लाखों लोग

जब भी ग़ज़लों का तह-ख़ाना खुलता है

तुम पर शायद चार बहारें खुलती हों

मुझ से तो हर पल वीराना खुलता है

सब की आँखों में आँसू आ जाते हैं

'आज़र' जब कोई दीवाना खुलता है

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