क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
दश्त से कह दो कि घर जाना है
मुझ में भी पहले उठेंगे तूफ़ाँ
फिर ख़मोशी को पसर जाना है
कोई कहता है कि मैं मलबा हूँ
किसी ने मुझ को खंडर जाना है
ख़ाक तो ख़ाक पे आ बैठेगी
ख़ाक को उड़ के किधर जाना है
उस की नादानी तो देखो 'आज़र'
फिर से दीवार को दर जाना है
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