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विसाल - बलराज कोमल कविता - Darsaal

विसाल

तेरी क़ुर्बत की लज़्ज़त-ए-शीरीं

जिस्म-ओ-जाँ में उतरती जाती है

चाँद ऊपर है नीले अम्बर में

झील नीचे है और हम दोनों

आ मिरे पास आ यहाँ शब-भर

अपने जिस्मों की वादी-ए-नौ में

सब्ज़ पेड़ों खनकते झरनों की

नग़्मगी लतीफ़ को ढूँडें

अपनी रूहें कसाफ़त-ए-ग़म से

तैर उठेंगी ताज़ा ज़िंदा

दो कँवल के हसीन फूलों के

रूप में ढल के मुस्कुराएँगी

और परियाँ हमें सुलाएँ गी

आसमाँ से ज़मीन तक हस्ती

ख़्वाब है और ख़्वाब-ए-आवारा

झोंके आते हैं नर्म और ताज़ा

दोनों जिस्मों में राज़दारी है

दोनों रूहों पे वज्द तारी है

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Visal In Hindi By Famous Poet Balraj Komal. Visal is written by Balraj Komal. Complete Poem Visal in Hindi by Balraj Komal. Download free Visal Poem for Youth in PDF. Visal is a Poem on Inspiration for young students. Share Visal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.