दूसरा जन्म
उदासी घनी और गहरी उदासी का साया
शगूफ़ों की सरगोशियाँ
चंद चेहरों के ख़ाके
निगाहों के मौहूम से दाएरों में कोई अजनबी बे-ज़बाँ रौशनी
ये न फ़र्दा न मौजूद
ये मुंक़लिब हो रहा है जो लम्हा
अगर ये अमल है तो सिर्फ़ अमल है
लब-ए-जू-ए-मय ख़ामुशी
और सैद-ए-फ़ुग़ाँ कोई हर्फ़-ए-तकल्लुम
कहीं रहगुज़र पर मिरे चश्म-ओ-लब
और आवाज़ से रौशनी की कशाकश
बहुत फ़ासला है मिरे और मेरे तसव्वुर के साहिल में
उस से परे इक जहान-ए-दिगर है
लब-ए-जू-ए-मय ग़र्क़-ए-आफ़ाक़ हूँ
दूसरी बार शायद जन्म ले रहा हूँ
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