रंग जो ख़ुश्बू न था
वादी-ए-मजनूँ में
आबरू-ए-ख़ून में
रू-ए-सर-शार-ओ-हसीं
मंज़र-ए-शब के क़रीं
मैं तुम्हें तरतीब दूँ
क़ुर्ब की तर्ग़ीब दूँ
अक्स की तारीफ़ में
रस्म की तहरीफ़ में
एक अफ़्साना कहूँ
सुब्ह तक जलता रहा हूँ
तुम ख़िराम-ए-नाज़ से
नुत्क़-ओ-लब के साज़ से
मर्ग-आसा जाँ-ब-लब
जादा-ए-तारीक जब
ज़िंदा-ओ-रौशन करो
और लहरा कर चलो
क़त्ल कर देना उसे
अक्स जो तुम सा न था
हर्फ़ जो मुझ सा न था
जज़्ब-ए-शो'ला-ए-ख़ू न था
रंग जो ख़ुश्बू न था
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