तअ'ल्लुक़ तर्क तो कर लें सभी से
भले लगते हैं कुछ नुक़सान लेकिन
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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अपना बिगड़ा हुआ बनाव लिए
ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा
आइने में है फिर वही सूरत
तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था
सम्त दुनिया के हम गए ही नहीं
मिले अब के तो रोए टूट कर हम
ज़ेर-ए-लब रख छुपा के नाम उस का
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
अब के ताबीर मसअला न रहे
हमें देखा न कर उड़ती नज़र से
कौन कहता है ठहर जाना है