शाम उतरी है फिर अहाते में
जिस्म पर रौशनी के घाव लिए
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कम न होगी ये सरगिरानी क्या
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
तअ'ल्लुक़ तर्क तो कर लें सभी से
दिल से बे-सूद और जाँ से ख़राब
हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन
मुस्कुराने का फ़न तो बअ'द का है
कशिश तुझ सी न थी तेरे ग़मों में
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
हम जो टूटे हैं बता हार भला किस की हुई
कौन कहता है ठहर जाना है
ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा
हमें रास आनी है राहों की गठरी