एक नश्शा है ख़ुद-नुमाई भी
जो ये उतरे तो फिर तुझे देखूँ
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सम्त दुनिया के हम गए ही नहीं
मैं सारे फ़ासले तय कर चुका हूँ
बार-ए-दीगर ये फ़लसफ़े देखूँ
अब उजड़ने के हम न बसने के
हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन
ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा
चाल अपनी अदा से चलते हैं
तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था
कम न होगी ये सरगिरानी क्या
मिरे कुछ भी कहे को काटता है
हमें रास आनी है राहों की गठरी