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कौन कहता है ठहर जाना है - बकुल देव कविता - Darsaal

कौन कहता है ठहर जाना है

कौन कहता है ठहर जाना है

रंग चढ़ना है उतर जाना है

ज़िंदगी से रही सोहबत बरसों

जाते जाते ही असर जाना है

टूटने को हैं सदाएँ मेरी

ख़ामुशी तुझ को बिखर जाना है

ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा

दश्त आँखों में ठहर जाना है

कोई दिन हम भी न याद आएँगे

आख़िरश तू भी बिसर जाना है

कोई दरिया न समुंदर न सराब

तिश्नगी बोल किधर जाना है

लग़्ज़िशें जाएँगी जाते जाते

नश्शा माना कि उतर जाना है

नक़्शा छोड़ा है हवा ने कोई

कौन सी सम्त सफ़र जाना है

ज़िंदगी से हैं पशेमाँ हम भी

कल ये दावा था कि मर जाना है

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