Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_18939309bb66492b300b3685b3ece6bf, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे - बहराम जी कविता - Darsaal

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

हसरत-ओ-आरज़ू-ए-जल्वा-ए-जानाँ में रहे

ख़ूँ है वो जिस से कि हो दामन-ए-क़ातिल रंगीं

ख़ून फ़ासिद है जो ख़ाली सर-ए-मिज़्गाँ में रहे

हम ने मस्नूअ से साने की हक़ीक़त पाई

बे-सबब हम नहीं नज़्ज़ारा-ए-ख़ूबाँ में रहे

सुब्ह ख़ुर्शीद को देखा हवस-ए-आरिज़ में

शाम से रौशनी-ए-शम्-ए-शबिस्ताँ में रहे

तोड़ा ज़ुन्नार को तस्बीह को फेंका हम ने

इश्क़-ए-रुख़ था हवस-ए-नूर-ए-दरख़्शाँ में रहे

जा-ब-जा हम को रही जल्वा-ए-जानाँ की तलाश

दैर-ओ-काबा में फिरे सोहबत-ए-रहबाँ में रहे

ख़ल्वत-ए-दिल की न कुछ क़द्र को समझे हाजी

तौफ़-ए-काबा के लिए दश्त-ओ-बयाबाँ में रहे

उन असीरों को हुइ क़ैद-ए-तअय्युन से नजात

जो कि पाबंद तिरे गेसू-ए-पेचाँ में रहे

इस ज़मीं में ग़ज़ल इक और भी लिक्खो 'बहराम'

ये दो-गज़ला तो भला आप के दीवाँ में रहे

(1018) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe In Hindi By Famous Poet Bahram Ji. Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe is written by Bahram Ji. Complete Poem Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe in Hindi by Bahram Ji. Download free Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe Poem for Youth in PDF. Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe is a Poem on Inspiration for young students. Share Hum Na But-KHane Mein Ne Masjid-e-viran Mein Rahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.