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Bahram Ji Poetry In Hindi - Best Bahram Ji Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Darsaal

बहराम जी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बहराम जी

बहराम जी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बहराम जी
नामबहराम जी
अंग्रेज़ी नामBahram Ji

ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल

ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा

यार को हम ने बरमला देखा

रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया

पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का

नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को

नहीं बुत-ख़ाना ओ काबा पे मौक़ूफ़

मैं बरहमन ओ शैख़ की तकरार से समझा

कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा

कहीं ख़ालिक़ हुआ कहीं मख़्लूक़

जा-ब-जा हम को रही जल्वा-ए-जानाँ की तलाश

इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो

है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश

ढूँढ कर दिल में निकाला तुझ को यार

यार को हम ने बरमला देखा

रखा सर पर जो आया यार का ख़त

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद

कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

हो चुका वाज़ का असर वाइज़

ग़मगीं नहीं हूँ दहर में तो शाद भी नहीं

दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह

दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

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