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वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है - ज़फ़र कविता - Darsaal

वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है

वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है

ये जुदाई नहीं तो फिर क्या है

हो मुलाक़ात तो सफ़ाई से

और सफ़ाई नहीं तो फिर क्या है

दिलरुबा को है दिलरुबाई शर्त

दिलरुबाई नहीं तो फिर क्या है

गिला होता है आश्नाई में

आश्नाई नहीं तो फिर क्या है

अल्लाह अल्लाह रे उन बुतों का ग़ुरूर

ये ख़ुदाई नहीं तो फिर क्या है

मौत आई तो टल नहीं सकती

और आई नहीं तो फिर क्या है

मगस-ए-क़ाब अग़निया होना है

बे-हयाई नहीं तो फिर क्या है

बोसा-ए-लब दिल-ए-शिकस्ता को

मोम्याई नहीं तो फिर क्या है

नहीं रोने में गर 'ज़फ़र' तासीर

जग-हँसाई नहीं तो फिर क्या है

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