Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_247cb169be7ab5350ca33e629462d7cf, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो - ज़फ़र कविता - Darsaal

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

गिर्ये से शाम-ओ-सहर क्यूँ कि हमें काम न हो

ले गया दिल का जो आराम हमारे या रब

उस दिल-आराम को मुतलक़ कभी आराम न हो

जिस को समझे लब-ए-पाँ-ख़ुर्दा वो मालिदा-मिसी

मर्दुमाँ देखियो फूली वो कहीं शाम न हो

आज तशरीफ़ गुलिस्ताँ में वो मय-कश लाया

कफ़-ए-नर्गिस पे धरा क्यूँकि भला जाम न हो

कर मुझे क़त्ल वहाँ अब कि न हो कोई जहाँ

ता मिरी जाँ तू कहीं ख़ल्क़ में बदनाम न हो

देख कर खोलियो तू काकुल-ए-पेचाँ की गिरह

कि मिरा ताइर-ए-दिल उस के तह-ए-दाम न हो

बिन तिरे ऐ बुत-ए-ख़ुद-काम ये दिल को है ख़तर

तेरे आशिक़ का तमाम आह कहीं काम न हो

आज हर एक जो यारो नज़र आता है निढाल

अपनी अबरू की वो खींचे हुए समसाम न हो

है मिरे शोख़ की बालीदा वो काफ़िर आँखें

जिस के हम चश्म ज़रा नर्गिस-ए-बादाम न हो

सुब्ह होती ही नहीं और नहीं कटती रात

रुख़ पे खोले वो कहीं ज़ुल्फ-ए-सियह-फ़ाम न हो

ऐ 'ज़फ़र' चर्ख़ पे ख़ुर्शीद जो यूँ काँपे है

जल्वा-गर आज कहीं यार लब-ए-बाम न हो

(790) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho In Hindi By Famous Poet Bahadur Shah Zafar. Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho is written by Bahadur Shah Zafar. Complete Poem Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho in Hindi by Bahadur Shah Zafar. Download free Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho Poem for Youth in PDF. Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho is a Poem on Inspiration for young students. Share Jab Ki Pahlu Mein Hamare But-e-KHud-kaam Na Ho with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.