बद्र वास्ती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बद्र वास्ती
नाम | बद्र वास्ती |
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अंग्रेज़ी नाम | Badr Wasti |
क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी
लहू का आख़िरी क़तरा निचोड़ने पर भी
हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
नवेद-ए-सफ़र
ख़बर शाकी है
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
बुरा हो कर भी वो अच्छा बहुत है