गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
है दर-ए-दिल पे कोई संग-ए-गिराँ हम-नफ़सो
रिसने लगती हैं जब आँखों से तेज़ाबी यादें
बात करते हुए जलती है ज़बाँ हम-नफ़सो
दिल से लब तक कोई कोहराम सा सन्नाटा है
ख़ुद-कलामी मुझे ले आई कहाँ हम-नफ़सो
इक सुबुक मौज है इक लौह-ए-दरख़्शाँ पे रवाँ
है तमाशाई यहाँ सारा जहाँ हम-नफ़सो
कितने मसरूफ़ हैं मसरूर नहीं फिर भी ये लोग
है ये क्या सिलसिला-ए-कार-ए-ज़ियाँ हम-नफ़सो
शाम तम्हीद-ए-ग़ज़ल रात है तकमील-ए-ग़ज़ल
दिन निकलते ही निकल जाती है जाँ हम-नफ़सो
रश्क-ए-महशर कोई क़ामत तो निगाहों में जचे
दिल में बाक़ी है अभी ताब-ओ-तवाँ हम-नफ़सो
ज़िंदा हो रस्म-ए-जुनूँ किस की नवा-रेज़ी से
अब रहा कौन यहाँ शो'ला-ब-जाँ हम-नफ़सो
आज की शाम ग़ज़ल क्यूँ न 'ख़लिश' से ही सुनें
ढूँड कर लाए कोई है वो कहाँ हम-नफ़सो
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