हयात ढूँढ रहा हूँ क़ज़ा की राहों में

हयात ढूँढ रहा हूँ क़ज़ा की राहों में

पनाह माँगने आया हूँ बे-पनाहों में

बदन ममी था नज़र बर्फ़ साँस काफ़ूरी

तमाम रात गुज़ारी है सर्द बाँहों में

अब उन में शोले जहन्नम के रक़्स करते हैं

बसे थे कितने ही फ़िरदौस जिन निगाहों में

बुझी जो रात तो अपनी गली की याद आई

उलझ गया था मैं रंगीन शाह-राहों में

न जाने क्या हुआ अपना भी अब नहीं है वो

जो एक उम्र था दुनिया के ख़ैर-ख़्वाहों में

मिरी तलाश को जिस इल्म से क़रार आए

न ख़ानक़ाहों में पाई न दर्स-गाहों में

(922) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein In Hindi By Famous Poet Badnam Nazar. Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein is written by Badnam Nazar. Complete Poem Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein in Hindi by Badnam Nazar. Download free Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein Poem for Youth in PDF. Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Hayat DhunDh Raha Hun Qaza Ki Rahon Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.