जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है
जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है
कोई मक़ाम हो सहरा दिखाई देता है
न जाने कौन है वो वक़्त-ए-शाम जो अक्सर
गली के मोड़ पे बैठा दिखाई देता है
जो चाँदनी में नहाते हुए भी डरता था
वो जिस्म धूप में जलता दिखाई देता है
पहुँच रही है जहाँ तक निगाह सड़कों पर
न कोई पेड़ न साया दिखाई देता है
कनार-ए-आब न बैठो कि झील में 'ख़ावर'
तुम्हारा अक्स भी उल्टा दिखाई देता है
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