ऐ परी-ज़ाद तेरे जाने पर
हो गया ख़ुद से राब्ता मेरा
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दास्तान-ए-ग़म तुझे बतलाएँ क्या
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
नहीं नहीं ये मिरा अक्स हो नहीं सकता
दिल ने हम से अजब ही काम लिया
मान लो साहिबो कहा मेरा
दिल से आख़िर चराग़-ए-वस्ल बुझा
मुफ़्लिसी ने जा-ब-जा लूटा हमें
थकन से चूर है सारा वजूद अब मेरा
तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है