नग़्मे तड़प रहे हैं दिल-ए-बे-क़रार में

नग़्मे तड़प रहे हैं दिल-ए-बे-क़रार में

आँखें बरस रही हैं ग़म-ए-इंतिज़ार में

फ़ितरत उदास सी है घटाएँ हैं सोगवार

इक ग़म-नसीब हुस्न है अब्र-ए-बहार में

है ज़र्रा ज़र्रा शौक़-ए-समाअ'त से बे-क़रार

तुम गुनगुना रहे हो किसी आबशार में

सावन की रुत बहार का मौसम अँधेरी रात

रिम-झिम के गीत गूँज रहे हैं फुवार में

सपनों में हो गया है सवेरा कहीं मुझे

बैठा हुआ हूँ जैसे किसी लाला-ज़ार में

ऐसा लगा कि साथ ही गाते हैं आबशार

क्या मोहनी सी लय है तुम्हारे सितार में

क्यूँ आज सर झुकाए हुए रो रहे हो तुम

बिखरे हुए हैं बाल ग़म-ओ-इंतिशार में

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