घटा सावन की उमडी आ रही है
घटा सावन की उमडी आ रही है
पयाम-ए-अश्क भर भर ला रही है
रगों में ख़ून गर्दिश कर रहा है
जवानी साज़-ए-दिल पर गा रही है
रुलाता है उन्हें भी क्या ये सावन
मुझे काली घटा तड़पा रही है
तरन्नुम-ख़ेज़ जमुना के किनारे
किसी की याद पैहम आ रही है
ये आख़िर कौन है जो चुप खड़ा है
नज़र हर बार धोका खा रही है
हम अपने दिल का दुखड़ा रो रहे हैं
तुम्हारी आँख झपकी जा रही है
तुम अपने ध्यान में डूबी हुई हो
तुम्हारी ओढ़नी लहरा रही है
मिरी बे-ख़्वाब आँखों को मुबारक
कि आख़िर मौत की नींद आ रही है
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