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कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है - अज़रक़ अदीम कविता - Darsaal

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

हम ने सेहन के इक कोने में दिया जलाया होता है

शाम-ए-तरब के लम्हो इस को मत आवाज़ें दिया करो

रात ने अपने सर पर ग़म का बोझ उठाया होता है

जलते हैं तो पेड़ ही जलते हैं सूरज की हिद्दत से

फूलों पर तो पत्तों की ठंडक का साया होता है

मैं ने आज तलक न देखा पौ फटने का मंज़र तक

जब भी सो कर उठता हूँ तो बादल छाया होता है

किस ने कहा है दीवारों पर साया करता है सूरज

दीवारों पर दीवारों का अपना साया होता है

उन लोगों से पूछे कोई शेर का रुत्बा और शुऊर

जिन लोगों ने ग़ज़ल को अपना ख़ून पिलाया होता है

शहर के लोग भी शहर के हंगामों में गुम होते ही 'अदीम'

बस्ती वालों ने भी कोई रोग लगाया होता है

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