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पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया - अज़रा वहीद कविता - Darsaal

पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया

पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया

आने वाली छाँव की ख़ुश-फ़हमियाँ भी दे गया

सख़्त बीजों से सुनहरी बालियाँ भी भर गईं

गर्म झोंका मौसमों की सख़्तियाँ भी दे गया

बादलों की आस उस के साथ ही रुख़्सत हुई

शहर को वो आग की बे-रहमियाँ भी दे गया

एहतिसाब उस का अमल था उस से वो फ़ारिग़ हुआ

वक़्त सड़कों को लुटी शहज़ादियाँ भी दे गया

बेबसी और भूक में जो हौसले देता रहा

प्यार करने की मुझे कमज़ोरियाँ भी दे गया

टहनियाँ फूलों से लद कर रब के आगे झुक गईं

मौसम-ए-गुल जाते जाते तितलियाँ भी दे गया

आसमाँ ने माँ ज़मीं की गोद तो भर दी मगर

दे के बेटे उन को कुछ ना-समझियाँ भी दे गया

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Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya In Hindi By Famous Poet Azra Waheed. Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya is written by Azra Waheed. Complete Poem Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya in Hindi by Azra Waheed. Download free Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya Poem for Youth in PDF. Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Par Saubat Raston Ki Garmiyan Bhi De Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.