अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना
वक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
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उन्हें मुझ से शिकायत है
हक़ीक़तें तो मिरे रोज़ ओ शब की साथी हैं
आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल क़ुर्बान किया
हार-सिंगार
फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको
किसी ख़याल की हिद्दत से जलना चाहती हूँ
मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो
कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में
सुब्ह के दो मंज़र
ख़्वाब-जंगल