ये बोसे
तुम मुझे मक़रूज़ कर देते हो
अपने बोसों से
मिरा बाल बाल बंध गया है
इस क़र्ज़े में
रोज़ बिला-नाग़ा
ये बोसे जैसे अपनी याद-दाश्त
खो देते हैं
जब आहिस्ता आहिस्ता मैं
अपनी उँगलियाँ फेरती हूँ
उन के सब्त किए हुए निशानों पर
ये मेरी पोरों पर
अपनी कोई लम्स नहीं छोड़ते
उन की गर्म-जोशी और तपिश
मेरे चेहरे पर सरसराने के बजाए
हवाओं की तुंदी से जा मिलती है
और
उन पत्तों से
जिन को पाला मार गया हो
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