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लफ़्ज़ों के खेल - अज़रा अब्बास कविता - Darsaal

लफ़्ज़ों के खेल

लफ़्ज़ों के खेल बहुत अजीब होते हैं

कभी आसमान पर ले जाते हैं

और कभी ज़मीन पर दे मारते हैं

ये कपड़ों के रंगों से ज़ियादा

कभी बहुत गहरे

कभी बहुत हल्के

सुरों में

धीमे धीमे

ख़ून सैराब करते हैं

और कभी एक एक क़तरा निचोड़ लेते हैं

ये आराम-देह बिस्तर पर हम से हम-बिसतरी करते हैं

और कभी हमारी आँवल नाल से चिपक जाते हैं

और जब तक हम ज़िंदा रहते हैं

ये हमें लोरियाँ देते हैं

और कभी हमें अचानक मर जाने पर

मजबूर करते हैं

और ये लफ़्ज़ ही एलान करते हैं

कि किस जगह किस तारीख़ को

हम कहाँ मुर्दा हालत में पाए गए

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