लफ़्ज़ों का ज़वाल
अब आ गया लफ़्ज़ों के ज़वाल का वक़्त
बहुत शोरीदा-सर
दिलों को कुचलते हुए
सुरों को रौंदते हुए
निकले थे
अब ख़ामोशी और सन्नाटे के
दरमियान
ये टुकुर टुकुर देखेंगे
जब एक दूसरे से टकराती चीज़ों
की आवाज़ें भी
उन का साथ नहीं देंगी
बहेगा पानी
एक मौज भी नहीं देगी उन्हें
जवाब
सब धकेल देंगे उन्हें
समुंदर में
ख़ामोशी से
यही है उन का मुक़द्दर
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