एक ज़िंदगी और मिल जाए
अगर मुझे एक ज़िंदगी
और मिल जाए
तो मैं अपने सफ़र को
अपने अस्बाब के साथ
बाँध कर रख्खूँ
एक परिंदे की तरह
पानियों से टकराती हुई
आँख से ओझल हो जाऊँ
एक ऐसे दरख़्त की तरह
जो सारी उम्र
धूप और छाँव का मज़ा लेता है
एक ऐसे बंजारे की तरह
जो पहाड़ों और मैदानों को
अपने क़दमों की धूल में
समेट लेता है
किसी ऐसी रक़्क़ासा की तरह
जो अपने मन का बोझ
अपने जिस्म पर डाल देती है
किसी ऐसी जंग में शरीक हो कर
जो भूक और नफ़रत के ख़िलाफ़
लड़ी जा रही हो
मारी जाऊँ
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