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अँधेरा - अज़रा अब्बास कविता - Darsaal

अँधेरा

ये सब कुछ अँधेरे में ही होता है

बहुत से औज़ार और ना-मालूम हाथ

एक अँधेरी कोठरी में

क़ैद कोई भी

कोई भी हो सकता है

जिस का गला काटा जाता है

या टाँग या हाथ तोड़ तोड़ कर फेंका जाता है

किसी भी डस्टबिन में

लेकिन ये कैसे देखा जाए

जैसे आँखों को किसी तेज़ धार आले

से काट दिया गया हो

जाएज़ या ना-जाएज़

कौन फलता फूलता है

और कौन डस्टबिन में फेंका जाता है

सौ पॉवर के बल्ब की रौशनी

भी मद्धम पड़ जाती है

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