सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं
सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं
प्यार की झूटी उम्मीदें ख़ामियाज़े पर रक्खी हैं
कोई तो अपना वा'दा ही आसानी से भूल गया
और किसी की दो आँखें दरवाज़े पर रक्खी हैं
उस के ख़्वाब हक़ीक़त हैं उस की ज़ात मुकम्मल है
और हमारी सब ख़ुशियाँ अंदाज़े पर रक्खी हैं
(1986) Peoples Rate This