सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत
सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत
मैं जिस के लब पे था सहर-ए-तवील की सूरत
किसी को मेरी ज़रूरत नहीं सो बे-मसरफ़
गड़ा हुआ हूँ किसी घर में कील की सूरत
मैं रहता ख़ेमा-ए-जाँ अब कहाँ ये नस्ब करूँ
चटख़ रहा है बदन ख़ुश्क झील की सूरत
उतर गया है पयम्बर कोई मिरे अंदर
ठहर गया हूँ मैं दरिया-ए-नील की सूरत
(1984) Peoples Rate This