Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_73ff9803fa07a789c907368026915ae7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं - अज़्म शाकरी कविता - Darsaal

ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं

ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं

टकरा के आबगीने से पत्थर हुआ हूँ मैं

आँखों के जंगलों में मुझे मत करो तलाश

दामन पे आँसुओं की तरह आ गया हूँ मैं

यूँ बे-रुख़ी के साथ न मुँह फेर के गुज़र

ऐ साहब-ए-जमाल तिरा आइना हूँ मैं

यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिए

अब वो नहीं रहा हूँ कोई दूसरा हूँ मैं

मेरी बुराइयों पे किसी की नज़र नहीं

सब ये समझ रहे हैं बड़ा पारसा हूँ मैं

वो बेवफ़ा समझता है मुझ को उसे कहो

आँखों में उस के ख़्वाब लिए फिर रहा हूँ मैं

(1950) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main In Hindi By Famous Poet Azm Shakri. Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main is written by Azm Shakri. Complete Poem Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main in Hindi by Azm Shakri. Download free Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main Poem for Youth in PDF. Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye Mat Kaho Ki BhiD Mein Tanha KhaDa Hun Main with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.