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तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम - अज़्म शाकरी कविता - Darsaal

तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम

तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम

ख़्वाब तुम देखोगे और ताबीर बन जाएँगे हम

अब के ये सोचा है गर आज़ाद तुम ने कर दिया

ख़ुद ही अपने पाँव की ज़ंजीर बन जाएँगे हम

आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ

लग रहा है दर्द की तस्वीर बन जाएँगे हम

लिख न पाए जो किसी की नीम-बाज़ आँखों का राज़

वो ये व'अदा कर रहे हैं 'मीर' बन जाएँगे हम

गर यूँ ही बढ़ता रहा दिन रात शुग़्ल-ए-मय-कशी

एक दिन इस मय-कदे के पीर बन जाएँगे हम

उस ने भी औरों के जैसा ही किया हम से सुलूक

जो ये कहता था तिरी तक़दीर बन जाएँगे हम

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