शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
मेरी आँखों में कोई ख़्वाब उतारा उस ने
सिलसिला टूटा नहीं मोम-सिफ़त लोगों का
पत्थरों में दिल-ए-बेताब उतारा उस ने
हम समझते थे कि अब कोई न आएगा यहाँ
दिल के सहरा में भी अस्बाब उतारा उस ने
बज़्म में ख़ूब लुटाए गए चाहत के गुलाब
इस तरह सदक़ा-ए-अहबाब उतारा उस ने
आँसुओं से कभी सैराब न होता सहरा
मेरे अंदर कोई सैलाब उतारा उस ने
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