अज़्म शाकरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अज़्म शाकरी
नाम | अज़्म शाकरी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Azm Shakri |
सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं
सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत
ज़िंदगी मेरी मुझे क़ैद किए देती है
ज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा
यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिए
ये जो दीवार अँधेरों ने उठा रक्खी है
शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
सारे दुख सो जाएँगे लेकिन इक ऐसा ग़म भी है
मेरे जिस्म से वक़्त ने कपड़े नोच लिए
मैं ने इक शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
अगर साए से जल जाने का इतना ख़ौफ़ था तो फिर
आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ
आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं
ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद
ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं
चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते