आमादगी को वस्ल से मशरूत मत समझ
ये देख इस सवाल पे संजीदा कौन है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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Gulzar
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खुलता नहीं कि हम में ख़िज़ाँ-दीदा कौन है
बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
कहीं गोयाई के हाथों समाअत रो रही है
सवाल करने के हौसले से जवाब देने के फ़ैसले तक
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता
ख़राबी
कोई आसान रिफ़ाक़त नहीं लिक्खी मैं ने
बे-हद ग़म हैं जिन में अव्वल उम्र गुज़र जाने का ग़म