ख़राबी

ख़राबी का आग़ाज़

कब और कहाँ से हुआ

ये बताना है मुश्किल

कहाँ ज़ख़्म खाए

कहाँ से हुए वार

ये भी दिखाना है मुश्किल

कहाँ ज़ब्त की धूप में हम बिखरते गए

और कहाँ तक कोई सब्र हम ने समेटा

सुनाना है मुश्किल

ख़राबी बहुत सख़्त-जाँ है

हमें लग रहा था ये हम से उलझ कर

कहीं मर चुकी है

मगर अब जो देखा तो ये शहर में

शहर के हर मोहल्ले में हर हर गली में

धुएँ की तरह भर चुकी है

ख़राबी रूएँ में

ख़्वाबों में, ख़्वाहिश में

रिश्तों में घिर चुकी है

ख़राबी तो लगता है

ख़ूँ में असर कर चुकी है

ख़राबी का आग़ाज़

जब भी जहाँ से हुआ हो

ख़राबी के अंजाम से ग़ालिबन

जाँ छुड़ाना है मुश्किल

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KHarabi In Hindi By Famous Poet Azm Bahzad. KHarabi is written by Azm Bahzad. Complete Poem KHarabi in Hindi by Azm Bahzad. Download free KHarabi Poem for Youth in PDF. KHarabi is a Poem on Inspiration for young students. Share KHarabi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.