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हर जगह आप ने मुम्ताज़ बनाया है मुझे - अज़ीज़ वारसी कविता - Darsaal

हर जगह आप ने मुम्ताज़ बनाया है मुझे

हर जगह आप ने मुम्ताज़ बनाया है मुझे

वाक़ई क़ाबिल-ए-एज़ाज़ बनाया है मुझे

जिस पर मर मिटने की हर एक क़सम खाता है

वही शोख़ी वही अंदाज़ बनाया है मुझे

वाक़ई वाक़िफ़-ए-इदराक-ए-दो-आलम तुम हो

तुम ने ही वाक़िफ़-ए-हर-राज़ बनाया है मुझे

जिस फ़साने का अभी तक कोई अंजाम नहीं

उस फ़साने का ही आग़ाज़ बनाया है मुझे

कभी नग़्मा हूँ कभी धुन हूँ कभी लय हूँ 'अज़ीज़'

आप ने कितना हसीं साज़ बनाया है मुझे

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