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यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में - अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी कविता - Darsaal

यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में

यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में

मसरूफ़ है यादों की पज़ीराई में

अब भी वही इज़हार-ए-तग़ाफ़ुल का मिज़ाज

अब भी वही अंदेशा शनासाई में

इसबात नफ़ी हो कि नफ़ी हो इसबात

क्यूँ जाऊँ मैं अल्फ़ाज़ की गहराई में

कुछ लोग तो मंज़िल की ख़बर भी ले आए

हम मस्त रहे लज़्ज़त-ए-ख़ुद-राई में

छोड़ूँ भी ख़याल उन का तो क्या हासिल हो

क्या ख़ाक कमी आएगी रुस्वाई में

आने में मसीहा को था पहले ही हिजाब

नासेह भी था अंदेशा-ए-रुस्वाई में

तफ़रीक़ के ख़ूगर तो सभी एक हुए

मसरूफ़ हैं हम लोग सफ़-आराई में

किस दर्जा मसर्रत है कि अब ख़ून-ए-'शहीद'

काम आया तिरी अंजुमन-आराई में

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