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तसमा-ए-पा - अज़ीज़ तमन्नाई कविता - Darsaal

तसमा-ए-पा

कब से ये बार-ए-गराँ

अपने काँधों पे उठाए हुए तन्हा तन्हा

गश्त करता हूँ मैं हैराँ हैराँ

मैं ने हर-चंद छुड़ाना चाहा

और मज़बूत हुई उस की गुलू-गीर गिरफ़्त

और संगीन हुआ जिस्म-ए-जवाँ पर पहरा

सामने फासला-ए-लामतनाही

दिल में सैकड़ों मन चले अरमानों के रंगीन चराग़

जिन की ख़ुशबू से मोअत्तर है दिमाग़

जिन से मुमकिन है कि मिल जाए मुझे

गुम-शुदा जन्नत का सुराग़

कब से काँधों पे उठाए हुए हैराँ हैराँ

वक़्त का बार-ए-गराँ

सोचता हूँ कि अगर

इस के पैरों के शिकंजे से निकल पाऊँ मैं

बे-कराँ अरसा-ए-हस्ती में बिखर जाऊँ मैं

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Tasma-e-pa In Hindi By Famous Poet Aziz Tamannai. Tasma-e-pa is written by Aziz Tamannai. Complete Poem Tasma-e-pa in Hindi by Aziz Tamannai. Download free Tasma-e-pa Poem for Youth in PDF. Tasma-e-pa is a Poem on Inspiration for young students. Share Tasma-e-pa with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.