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ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ - अज़ीज़ तमन्नाई कविता - Darsaal

ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ

ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ

कश्मकश सी है मगर गर्दिश-ए-अय्याम के साथ

रिफ़अतें देखती रह जाती हैं उस की पर्वाज़

वो तसव्वुर कि है वाबस्ता तिरे नाम के साथ

मिल ही जाएगी कभी मंज़िल-ए-मक़्सूद-ए-सहर

शर्त ये है कि सफ़र करते रहो शाम के साथ

दाम-ए-हस्ती है ख़ुश-आइंद भी दिलकश भी मगर

उड़ते जाते हैं गिरफ़्तार उसी दाम के साथ

जब किसी लम्हा-ए-दौराँ को टटोला हम ने

रू-ए-आग़ाज़ नज़र आया है अंजाम के साथ

उन रिवायात को दोहराते हैं हम अज़-सर-ए-नौ

वो जो मंसूब हैं सदियों से तिरे नाम के साथ

हर्फ़ आए न 'तमन्नाई' कहीं साक़ी पर

आज महफ़िल में चले आए हैं हम जाम के साथ

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