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उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में - अज़ीज़ तमन्नाई कविता - Darsaal

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

वो इक चराग़ जो जलता रहा निगाहों में

शमीम-ए-गुल से सुबुक-तर किरन से नाज़ुक-तर

कोई लतीफ़ सी शय आ गई है बाहोँ में

ये किस की हश्र-ख़िरामी की बात उट्ठी है

हमारा नाम पुकारा गया गवाहों में

ख़बर न थी कि वही अपनी यूँ ख़बर लेंगे

शुमार करते थे हम जिन को ख़ैर-ख़्वाहों में

अभी हैं राख में चिंगारियाँ दबी लेकिन

मज़ा कहाँ है वो पहला सा अब की चाहूँ में

हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप को सँवारा है

लुटा के रौशनी-ए-तब्अ जल्वा-गाहों में

रगों में जैसे रवाँ है लहू 'तमन्नाई'

किसी की मौज-ए-करम है मिरे गुनाहों में

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