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ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी - अज़ीज़ तमन्नाई कविता - Darsaal

ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी

ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी

ख़ामोशियों ने हम को पुकारा कभी कभी

ले दे के एक साया-ए-दीवार-ए-आरज़ू

देता है रहरवों को सहारा कभी कभी

किस दर्जा दिल-फ़रेब हैं झोंके उमीद के

ये ज़िंदगी हुई है गवारा कभी कभी

सौंपा है हम ने जिस को हर इक लम्हा-ए-हयात

ऐ काश हो सके वो हमारा कभी कभी

ऐ मौज-ए-ख़ुश-ख़िराम ज़रा तेज़ तेज़ चल

बनती है सत्ह-ए-आब किनारा कभी कभी

दस्त-ए-तही बढ़ाइए किस इश्तियाक़ से

टूटा है शाख़-ए-शब से जो तारा कभी कभी

हद्द-ए-नज़र के पार 'तमन्नाई' कौन है

महसूस हो रहा है इशारा कभी कभी

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KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi In Hindi By Famous Poet Aziz Tamannai. KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi is written by Aziz Tamannai. Complete Poem KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi in Hindi by Aziz Tamannai. Download free KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi Poem for Youth in PDF. KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi is a Poem on Inspiration for young students. Share KHalwat Hui Hai Anjuman-ara Kabhi Kabhi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.