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आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग - अज़ीज़ नबील कविता - Darsaal

आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग

आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग

बैठे हैं अभी पर्दा-ए-असरार में हम लोग

लाए गए पहले तो सर-ए-दश्त-ए-इजाज़त

मारे गए फिर वादी-ए-इंकार में हम लोग

इक मंज़र-ए-हैरत में फ़ना हो गईं आँखें

आए थे किसी मौसम-ए-दीदार में हम लोग

हर रंग हमारा है, हर इक रंग में हम हैं

तस्वीर हुए वक़्त की रफ़्तार में हम लोग

ये ख़ाक-नशीनी है बहुत, ज़िल्ल-ए-इलाही

जचते ही नहीं जुब्बा-ओ-दस्तार में हम लोग

अब यूँ है कि इक शख़्स का मातम है मुसलसल

चुनवाए गए हिज्र की दीवार में हम लोग

सुनते थे कि बिकते हैं यहाँ ख़्वाब सुनहरे

फिरते हैं तिरे शहर के बाज़ार में हम लोग

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