Ghazals of Aziz Nabeel
नाम | अज़ीज़ नबील |
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अंग्रेज़ी नाम | Aziz Nabeel |
जन्म की तारीख | 1976 |
जन्म स्थान | Qatar |
ज़मीं की आँख से मंज़र कोई उतारते हैं
ये किस वहशत-ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं
ये किस मक़ाम पे लाया गया ख़ुदाया मुझे
वो दुख नसीब हुए ख़ुद-कफ़ील होने में
वक़्त की आँख में सदियों की थकन है, मैं हूँ
उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह
सुनो मुसाफ़िर! सराए-जाँ को तुम्हारी यादें जला चुकी हैं
सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी
सुब्ह और शाम के सब रंग हटाए हुए हैं
सर-ए-सहरा-ए-जाँ हम चाक-दामानी भी करते हैं
परिंदे झील पर इक रब्त-ए-रूहानी में आए हैं
न जाने कैसी महरूमी पस-ए-रफ़्तार चलती है
मोजज़े का दर खुला और इक असा रौशन हुआ
मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से
मैं नींद के ऐवान में हैरान था कल शब
मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ
मैं अपने गिर्द लकीरें बिछाए बैठा हूँ
कुछ देर तो दुनिया मिरे पहलू में खड़ी थी
ख़याल-ओ-ख़्वाब का सारा धुआँ उतर चुका है
ख़ाक चेहरे पे मल रहा हूँ मैं
जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी
इस बार हवाओं ने जो बेदाद-गरी की
हयात-ओ-काएनात पर किताब लिख रहे थे हम
गुज़रने वाली हवा को बता दिया गया है
धूप के जाते ही मर जाऊँगा मैं
दश्त-ओ-सहरा में समुंदर में सफ़र है मेरा
बिखेरता है क़यास मुझ को
बातों में बहुत गहराई है, लहजे में बड़ी सच्चाई है
अगरचे ज़ेहन के कश्कोल से छलक रहे थे
आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं