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ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं - अज़ीज़ लखनवी कविता - Darsaal

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

फ़क़त इस लिए ये हिजाब है कि किसी को ताब-ए-नज़र नहीं

कहो कुछ हक़ीक़त-ए-मुशतहर कि मुझे कहीं की ख़बर नहीं

ये मनाज़िर-ए-दो-जहाँ हैं क्या जो फ़रेब-ए-ज़ौक़-ए-नज़र नहीं

किसी आह में नहीं सोज़ जब किसी नाले में जब असर नहीं

ये कमाल-ए-सोज़िश-ए-दिल नहीं ये फ़रोग़-ए-दाग़-ए-जिगर नहीं

चमक उठ रही है जो पय-ब-पय ये तजल्लियों का ख़ज़ाना है

ये हुजूम-ए-बर्क़-ए-तपाँ नहीं ये मता-ए-दर्द-ए-जिगर नहीं

ये है एहतिमाम-ए-हिजाब क्यूँ ये है बंद-ओ-बस्त-ए-नक़ाब क्यूँ

तुम्हें आँख भर के मैं देख लूँ वो नज़र नहीं वो जिगर नहीं

वो रहीन-ए-लज़्ज़त-ए-ग़म हूँ मैं न मिली अज़ल में जिसे तरब

मैं ही उस करम का था मुंतज़िर मैं ही मुस्तहिक़ था मगर नहीं

कभी वक़्त-ए-नाज़-ओ-नियाज़ है कभी महव-ए-ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ है

मगर उस पे भी दिल-ए-ग़ज़नवी करम-आश्ना-ए-नज़र नहीं

ये तअय्युनात-ए-निज़ाम थे फ़क़त एक पर्दा-ए-मासिवा

ख़बर उस की जब से हुई मुझे कोई इस जहाँ की ख़बर नहीं

तुझे कार-गाह-ए-फ़ना बता इन्ही हस्तियों पे ग़ुरूर है

जो शरीक-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ नहीं जो रहीन-ए-नफ़-ओ-ज़रर नहीं

चमक ऐ चराग़-ए-ज़मीर अब कि तुलूअ' मेहर-ए-कमाल हो

वो लहद हूँ तीरा-ओ-तार मैं कि जहाँ बयाज़-ए-सहर नहीं

न वो सोज़ है न वो साज़ है न वो दिल ख़ज़ाना-ए-राज़ है

वो शरर हूँ जिस में धुआँ नहीं वो हजर हूँ जिस में शरर नहीं

नज़र उस की है मिरी सम्त अभी मिरा दामन-ए-गोहरीं न देख

अभी ख़ून-ए-दिल है रुका हुआ अभी आँसुओं से ये तर नहीं

चमक ऐ तजल्ली-ए-दिल-रुबा निकल ऐ खुलासा-ए-दुआ

कि नज़ारा-ए-दो-जहाँ फ़क़त ये मआल-ए-ज़ौक़-ए-नज़र नहीं

ये जुब्बा-साई-ए-बे-महल मुझे शब को दे रही थी ख़बर

न मिटा दे ज़ुल्मत-ए-दहर जो वो निशान-ए-सज्दा-ए-दर नहीं

ये तग़य्युरात-ए-जहाँ नहीं असर-ए-तलव्वुन-ए-तब्अ' है

तिरी इक नज़र का करिश्मा ये फ़लक की गर्दिश-ए-सर नहीं

कहो शम्अ' से कि ये नक़्ल क्या कोई अपना क़िस्सा-ए-ग़म कहे

करे अब फ़साने को मुख़्तसर कि मुझे उमीद-ए-सहर नहीं

है तलाश अपनी फ़क़त मुझे मैं मिलूँ तो होंगी शिकायतें

मुझे अब किसी से गिला नहीं मुझे अब किसी की ख़बर नहीं

यही मंज़िलें हैं वो मंज़िलें कि जहन्नम उन से पनाह ले

दिल-ए-ना-शनास-ए-रह-ए-वफ़ा मुझे कोई ख़ौफ़-ओ-ख़तर नहीं

मिरी ग़फ़लतों का गिला न कर यही नज़्म-ए-कौन-ओ-फ़साद है

ख़बर इस तिलिस्म-ए-नुमूद की मुझे हो चुकी है मगर नहीं

सबक़ उस से ले कि ख़बर मिले तुझे आने वाले ज़माने की

है तग़य्युरात का आइना ये शिकस्ता कासा-ए-सर नहीं

ये हैं दार तेरी निगाह के किसी ना-तवाँ से रुकेंगे क्या

दिल-ए-दाग़ दाग़-ए-'अज़ीज़' है सितम-आज़मा ये सिपर नहीं

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