मिरे नासेह मुझे समझा रहे हैं
मिरे नासेह मुझे समझा रहे हैं
फ़रीज़ा है अदा फ़रमा रहे हैं
धुआँ उठता है इक इक मू-ए-तन से
सज़ा अपने किए की पा है हैं
तिलिस्म-ए-हस्ती-ए-फ़ानी दिखा कर
अभी कुछ देर वो भुला रहे हैं
जहाँ से कल हमें आना पड़ा था
वहीं मजबूर हो कर जा रहे हैं
दिखा देंगे 'अज़ीज़' अंजाम-ए-दुनिया
अभी तो ख़ैर धोका खा रहे हैं
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